पत्र लेखन क्या है-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने भावों, विचारों, सूचनाओं को दूसरे तक संप्रेषित करना चाहता है। आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानेंगे की पत्र लेखन क्या है तथा पत्र लिखते समय किन -किन बातो का हमें ध्यान रखना चाहिए। लिए पत्र एक उत्तम साधन है। पत्र के माध्यम से हम बिना किसी संकोच और भय के हम अपने मन की बात इच्छित व्यक्ति तक पहुंचा सकते हैं। इसके लिए पत्र एक उत्तम साधन है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम आपके सामने पत्र लेखन से संबंधित पोस्ट प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिससे आप पत्राचार या पत्र लेखन का महत्व समझ सके। तो चलिए पत्राचार को समझाने का प्रयास करते हैं।
पत्र लेखन कैसे किया जाता है-
पत्र लेखन साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। जिसके अंतर्गत हमारे दैनिक जीवन के अनेक क्रियाकलाप , विचारों का आदान-प्रदान, आदि को अत्यंत स्वभाविक तरीके से व्यक्त किया जाता है। छात्र जीवन से ही पत्र लेखन का विकास होने लगता है। मानव अपने स्वाभाविक भाव की अभिव्यक्ति पत्र लेखन द्वारा ही करता है। पत्रलेखन अथवा पत्राचार एक ऐसा माध्यम है जो दूरस्थ व्यक्तियों की भावना एवं पाने वाले की भावना को जोड़ देता है। पत्र लेखन व्यक्तिक , सामाजिक , राजनीतिक, व्यापारिक एवं प्रशासनिक जीवन के लिए आवश्यक है। जन्म-मरण, विवाह , शोक आदि के संदर्भ में पत्र द्वारा सूचना दी जाती है। प्रशासन से संबंधित सूचना एवं निर्णय आदि भी पत्रों के माध्यम से संबंधित व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। आज के समय में पत्र लेखन या पत्राचार एक कला है। इसलिए पत्र लेखन का एक विशिष्ट महत्व है।
पत्र लेखन की विशेषता-
पत्र लेखन अपने आप में एक कला है। जिस प्रकार कारीगर अपने शिल्प, मूर्ति आदि को आकार, आकृति प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार लेखक भी अपने शब्दों, भावों और शैली आदि के माध्यम से पत्रों को प्रस्तुत करता है। पत्रों को प्रभावशाली होना चाहिए। पत्र लेखन में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए -
(1). शुद्धता: पत्र लेखन के विषय में शुद्धता आवश्यक है। पत्र लिखते समय काल, लिंग, वचन, पुरुष आदि का ध्यान रखते हुए पत्र पूर्ण करना चाहिए। व्यवसायिक या प्रशासनिक पत्रों में इसका अत्यधिक महत्व है।
(2). शिष्टता: पत्र के द्वारा लेखक का व्यक्तित्व जाना जाता है। अतः पत्र में शालीनता पूर्वक अपनी बातों को व्यक्त करना चाहिए। व्यवसायिक पत्रों में पत्रों के द्वारा ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है। इसलिए उसमें नम्रता जरूरी हो जाता है। शिष्टता के अभाव में कोई भी पत्र चाहे जितना अच्छा क्यों ना लिखा गया हो, उसमें निष्प्राण दिखाई देना चाहिए।
(3). स्पष्टता: पत्र लिखते समय लेखक विशेष रुप से ध्यान रखें कि वह अपने भाव या विचारों को क्रमबद्ध रूप से व्यक्त करें। जिससे पाठक लेखक के विचारों को स्पष्ट रूप से समझ सके। प्रशासनिक तथा व्यवसायिक जीवन से संबंधित पत्रों में यह स्पष्टता और आवश्यक रहती है।
(4). सरल भाषा का प्रयोग: पत्रों को शुद्ध एवं सरल भाषा में लिखना चाहिए। अलंकारिक एवं दुरुह पदों के प्रयोग वर्जित है। पद छोटे छोटे हो इससे अर्थ की सार्थकता स्वयमेव समझ में आ जाती है। अनावश्यक बातों का उल्लेख नहीं करना चाहिए।
(5). संक्षिपत्ता: पत्र लेखन में यह ध्यान रखें कि पत्र बहुत बड़ा ना हो समय की मांग के अनुरूप पत्र संक्षिप्त या सटीक हो तभी वह सहज स्वीकार्य होगा। इससे समय की बर्बादी नहीं होती है।
(6). संपूर्णता: पत्र संक्षिप्त लिखने की आपाधापी में कोई विचार अधूरे ना हो। विचार की पूर्णता से ही भावार्थ स्पष्ट होता है। अतः जो बातें व्यक्त की जाए वही अपने आप में संपूर्ण हो ऐसे पत्र ही श्रेष्ठ एवं आदर्श पत्र माने जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि पत्र लेखक को संपूर्ण एवं संक्षिप्त रूप से बातें व्यक्त करना चाहती है। जिससे पढ़ने वाले पाठक स्पष्ट रूप से समझ सके।
(7). प्रभाव उत्पादक: पत्र इतने रोचक और आकर्षक शैली में लिखने का प्रयास करना चाहिए कि पढ़ते ही पाठक प्रभावित हो जाए और पत्रों में लिखे गए बातों को सहायता से मान ले। गांधी तथा प्रेमचंद के पत्रों में यही गुण थे जिनके कारण पढ़कर व्यक्ति उनके भाव के अनुरूप हो जाया करते थे।
(8). पदों में बाहरी सजावट: पत्र में बाहरी सजावट निम्नानुसार होनी चाहिए। जिससे पढ़ने वाले व्यक्ति आकर्षित हो जाए। जो इस प्रकार होना चाहिए -
- पत्राचार में लिखावट सुंदर होना चाहिए।
- शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद आदि यथा स्थान उल्लेख हो।
- विराम चिन्हों का उचित प्रयोग वांछित है।
- विषय वस्तु के अनुपात में कागज का उपयोग करना चाहिए।
पत्र लेखन के प्रमुख अंग-
पत्र के सभी विषयों के लिए पत्र के 4 अंगों का होना अति आवश्यक है। जो निम्नलिखित है -
(1).पता एवं दिनांक
अनौपचारिक पत्र के बाई और ऊपर कोने में पत्र लेखक का पता एवं उसके नीचे तिथि दी जाती है। औपचारिक पत्र में बाई और प्रेषक के विभाग का नाम पता एवं दिनांक होता है। बाएं ओर ही प्राप्त कर्ता का नाम एवं विभाग आदि दिया जाता है।
(2). संबोधन एवं अभिवादन
दोनों प्रकार के पत्रों में पत्र प्राप्त करने वाले के किसी ना किसी संबोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे पूजनीय, प्रिय, मान्यवर, महोदय आदि।
(3). पत्र की सामग्री (कलेवर)
कलेवर के संबंध में निम्नलिखित जानकारियां आवश्यक है -
- भाषा सरल एवं वाक्य छोटे होने चाहिए।
- कलेवर बहुत विस्तृत नहीं होना चाहिए।
- लेखक द्वारा लिखी गई बातें स्पष्ट होनी चाहिए।
- पत्र में शब्दों की पुनरावृत्ति ना हो गागर में सागर भरने पर ही जोर देना चाहिए।
- सरकारी पत्र में काट छांट नहीं करना चाहिए।
(4). पत्र की समाप्ति अंग
अनौपचारिक पत्र में लिखने वाले और पाने वाले की आयु, अवस्था एवं गरिमा के अनुरूप निर्देश बदल जाते हैं। जैसे तुम्हारा, आपका, विनीत आदि।
औपचारिक पत्र का अंत प्रायः निर्धारित एवं स्व निर्देश द्वारा होता है। जैसे- भवदीय, शुभेच्छु, आपका, आज्ञाकारी आदि।
पत्र लेखन के प्रकार
औपचारिक पत्र क्या है-
औपचारिक पत्र अत्यंत सीमित, स्पष्ट भाषा शैली में विधि संगत रूप से प्रस्तुत किए जाते हैं। औपचारिक पत्र का लेखन पर्याप्त सूझबूझ के साथ उपर्युक्त तरीकों एवं तकनीकी शैली में लिखा जाता है। औपचारिक पत्र का निश्चित स्वरूप एवं प्रतिमान रहता है। औपचारिक पत्र निर्धारित स्वरूप के अभाव में अस्वीकार कर दिए जाते हैं। इसके अंतर्गत पदाधिकारियों के पत्र, व्यापारिक पत्र , समाचार पत्र को लिखे जाने वाले पत्र और शासकीय एवं शासकीय अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र आदि आते हैं। इसमें तकनीकी शब्दावली के प्रयोग होते हैं। इसमें मुख्यतः तीन प्रकार के पत्र आते हैं। जैसे- सरकारी पत्र, अर्ध सरकारी पत्र, व्यवसायिक पत्र।
अनौपचारिक पत्र क्या है-
अनौपचारिक पत्र के अंतर्गत निजी एवं परिवारिक पत्र आते हैं। इसकी भाषा एवं शैली खुली रहती है। अनौपचारिक पत्र में व्यक्तिगत बातो एवं भावों की प्रधानता रहती है। अनौपचारिक पत्र के लिए वार्तालाप और आत्मीय १ौली महत्वपूर्ण होती है। अनौपचारिक पत्र किसी भी रूप से स्वीकार किए जाते हैं। इसमें घनिष्ठता, विश्वासनीयता, निकटता एवं प्रगाढ़ता छलकती है। यह पत्र सगे-संबंधी, मित्र-गुरुजन, माता-पिता आदि को लिखे जाते हैं। इसे मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है। जैसे- सामाजिक पत्र , निजी पत्र।
सरकारी पत्र क्या है? सरकारी पत्र कैसे लिखा जाता है-
सरकारी पत्र पाय: विदेशी सरकार और राज्य सरकारों को क्रमबद तथा मातहत कार्यालयों , सर्वजनिक निकायों आदि को लिखे जाते हैं। सरकारी अथवा शासकीय पत्र में औपचारिकता अधिक होती है। सरकारी पत्र में एक विशिष्ट और स्पष्ट भाषा शैली होती है। अनौपचारिक पत्र का इसमें विशेष रुप से ध्यान रखा जाता है। इसके प्रमुख अंगों में सरनामा पत्र संख्या, पत्र प्रेषक का नाम, प्रेषति का नाम, विषय संकेत, संदर्भ, संबोधन, विषय का स्पष्टीकरण, हस्ताक्षर व पदनाम आदि उल्लेखनीय हैं। सरकारी पत्र में 'मुझे निर्देश हुआ' या 'मुझे आदेश हुआ' पदावली का प्रयोग कलेवर में जुड़ा रहता है। सरकारी पत्र के संबोधन में महोदय शब्द का प्रयोग होता है।
उदाहरण:- इमेज देखिए👇
यह भी देखिए -भारतीय संविधान में शिक्षा संबंधी प्रावधान।
अशासकीय पत्र क्या है अशासकीय पत्र कैसे लिखा जाता है-
अर्ध सरकारी पत्र प्राय: केंद्र सरकार द्वारा अपने विभागों के अधिकारियों द्वारा किसी अन्य विभाग के व्यक्ति को व्यक्तिगत ध्यान करने या किसी विशेष बिंदु पर आकर्षित करने हेतु प्रेषित किया जाता है। अर्ध सरकारी पत्र में औपचारिकता के साथ-साथ अनौपचारिकता भी होती है। इसका मुख्य उद्देश्य अधिकारियों की व्यक्तिगत सम्मति जानना, जानकारी या सूचना पाना, विचारों का विचार विमर्श अथवा आदान प्रदान करना होता है। इसमें प्रेषित अधिकारी अपना हस्ताक्षर करता है, पद के नाम का उल्लेख नहीं।
व्यवसायिक पत्र क्या है? व्यवसायिक पत्र कैसे लिखते हैं-
आधुनिक युग व्यवसाय प्रधान युग है। आधुनिक युग में व्यापार का प्रचार प्रसार जोरों से चल रहा है। व्यवसायिक पत्र के अंतर्गत निमंत्रण, अनुरोध, समस्या, धन्यवाद, स्वीकृति आदि पत्र आते हैं। आज के इस युग में व्यवसायों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए व्यवसायिक पत्रों की आवश्यकता पड़ रही है। व्यवसायिक पत्राचार जीवन के लिए अति आवश्यक है। ऐसा एक पत्र के माध्यम से व्यवसाय में घनिष्ठ संबंध प्रदर्शित कराता है। व्यवसाय के क्षेत्र में अधिकतर कार्य आज पत्र के माध्यम से हो रही है।
उदाहरण : - इमेज देखिए👇
आपसी पत्र क्या ? निजी पत्र कैसे लिखते हैं-
निजी पत्र अनौपचारिक पत्र के अंतर्गत आता है। यह पूर्णत: परिवारिक और आपसी रिश्तो की कोमलता, आत्मीयता के साथ ही भावपूर्ण होता है। हर्ष, विवाद ,उल्लास ,सहज रूप से इसमें प्रस्तुत करता है। इसमें दिखावा आडंबर नहीं होता है। औपचारिक पत्र की भांति इसकी भाषा भी सधी हुई नहीं होती। निजी पत्र की भाषा सरल, सुबोध एवं सामान्य बोलचाल की भाषा होती है। निजी पत्र में पत्र लिखने वाले अपने आप को मानसिक दृष्टि से पत्र पाने वाली के निकट अनुभव करता है।
उदाहरण:- इमेज देखिए👇
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